Thursday, January 1, 2015

तन्हा मन

२८ जून २०१४

आज फिर मन तन्हा है
आज फिर कुछ बिखरा बिखरा सा लगता है
ज़िन्दगी के आयाम कुछ बदल से गए हैं
जो पहले इकठ्ठा होता था वो
आज भी इकठ्ठा है, पर औरों को
भ्रमित सा करता
अब cloud और technology का
ज़माना है
इसलिए मिलन भी वहीँ होता है
फिर भी
वो गुजरा ज़माना रह रह कर याद आता है...

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