Sunday, January 11, 2015

मेरी दुनिया

जनवरी ०९, २०१५

छोटी सी मेरी दुनिया थी
प्यारी सी मेरी दुनिया थी
स्वच्छन्द सा मेरा जीवन था
ख़ुशियों से भरा मेरा दामन था
जहाँ जी करता मैं जाता था
जो जी करता मैं लिखता था
भरी जवानी में सब बदल गया
बाज़ारों में बम फटने लगे
बसों में गोलियाँ चलने लगी
पहले दुश्मन देश की सीमा पार था
पर अब दुश्मन अनजाना है
पता ही नहीं अपना है या बैगाना है
जाने उसका क्या पैमाना है
हमारा ही कोई भटक गया है
धर्म के नाम पर अटक गया है
अरे हम सभी तो उसके बन्दे हैं
चाहे जैसे पुकारो
यीशु, अल्लाह या फिर राम
जिसने हमें बनाया
छोटे से दिल में रहमत दी
सोचों उसका दिल कितना बड़ा होगा
अरे वो तो मसीहा है
जो अपने बच्चों से ना तो अपमानित होता है
ना सम्मानित
वो तो दया का सागर है जैसे चाहें उसे देखें अपनी ख़ुशियों के लिये फिर कोई बनाये कार्टून या कोई तस्वीर हम कौन होते हैं उसकी पैरवी करने वाले क्या वह इतना कमज़ोर है?
आओ मिलकर बनाऐं एक
बेहतर दुनिया जहाँ ना कोई
आतन्कित होगा
ना ही आतन्कवादी
होगी फिर वही स्वच्छन्दता
होगी फिर वही ख़ुशियाँ ।

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