Thursday, January 1, 2015

मेरी अर्धान्गिनी

२४ नवम्बर २०१४

जीवन के अधूरेपन को पूरा करती है
इसिलिये अर्धांगिनी कहलाती है
खिलखिलाते, प्यार करते
लड़ते, झगड़ते
फिर मुस्कराते,
फिर बच्चों की किलकारियां 
फिर उनका भी बड़ा होना, समझदार होना
जीवन चक्र को पूरा करता है
पूर्णता का एहसास दिलाता है
आधे अधूरों को पूरा पूरा करता है
इसिलिये तो वह जीवन साथी होता/होती है
लेकिन पुरुष से ज्यादा स्त्री उस अर्धता को 
पूरी करती है, तभी तो
वह अर्धांगिनी कहलाती है
कभी पुरुष को स्त्री का अर्धांग 
होते सुना है?
यूँ ही चलते रहना
कदम से कदम मिलाते रहना
हमें पूर्णत्व का एहसास दिलाते रहना
और खुद भी लहलहाते रहना.

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