Thursday, January 1, 2015

एक सुनामी

२६ दिसम्बर २०१४

जीवन की गहराइयों और
समुद्र की अथाह गहराइयों में
हरदम उथलपुथल मची होती है
उपर से कुछ और व
अन्दर से कुछ और
शान्त और मूक प्रतीत होते
दोनों कब उबल पड़ें 
कहा नहीं जा सकता
दोनों प्राकृतिक पर दोनों कि 
अपनी अपनी प्रकृति 
कब कौन किस पर पार पा ले
कहना मुश्किल
एक तीव्र कंपन ने लहरों को
बेक़ाबू किया और बहा ले गयी
जीवन अपने ही मित्रों का
प्रकृति ने ही प्रकृति का विनाश किया
कुछ बचे जीवनों को तबाह किया
तबाही के मंज़र का एक दशक
हमनें तो भुला दिया और फिर से
दोस्ती कर ली बेदर्द से
जो चुपके से एक दिन अचानक
सब कुछ लील चुका था
पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर कैसा
जीवन में जीवन से बैर कैसा
क्योंकि जल ही तो जीवन है
क्योंकि जल ही तो जीवन है

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