०२ अगस्त २०१४
चकोर की तरह आँखें आसमान में
टकटकी लगाती है
लगता है जैसे
अब मानसून आ गया है
काले बादल तो आते हैं
आँखों को सुकून दे जाते हैं
पर मन फिर भी प्यासा रह जाता है
क्योंकि बादल सिर्फ रंग बदलते हैं
गिरगिट की तरह
कभी काले तो कभी सफ़ेद
और कर जाते हैं हमें पसीना पसीना
अरे, शर्म तो बादलों को आना चाहिए
जो हमारी आशा को निराश कर देते हैं
इसलिए पसीना तो बादलों को आना चाहिए..
चकोर की तरह आँखें आसमान में
टकटकी लगाती है
लगता है जैसे
अब मानसून आ गया है
काले बादल तो आते हैं
आँखों को सुकून दे जाते हैं
पर मन फिर भी प्यासा रह जाता है
क्योंकि बादल सिर्फ रंग बदलते हैं
गिरगिट की तरह
कभी काले तो कभी सफ़ेद
और कर जाते हैं हमें पसीना पसीना
अरे, शर्म तो बादलों को आना चाहिए
जो हमारी आशा को निराश कर देते हैं
इसलिए पसीना तो बादलों को आना चाहिए..
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