२९ जून २०१४
सहनशक्ती अति सहनशक्ती
शायद माँ के कई पर्यायों में है
तभी तो सभी प्रहार सहकर
धरती माँ हमें कुछ नहीं कहती
और कितना निचोड़ेगें हम
अब तो छाती में दूध भी ना रहा
खून भी बूंद बूंद सूख रहा
न गंगा को कहीं का छोड़ा
ना यमुना को
इज्ज़त उतारने में
मतलब संवारने में
इंसान से कमीना कोई है?
पर अब वक़्त आया है
माता को अहिल्या बनकर
कपूतों को मिटाने का
अपने सपूतों को बचाने का...
सहनशक्ती अति सहनशक्ती
शायद माँ के कई पर्यायों में है
तभी तो सभी प्रहार सहकर
धरती माँ हमें कुछ नहीं कहती
और कितना निचोड़ेगें हम
अब तो छाती में दूध भी ना रहा
खून भी बूंद बूंद सूख रहा
न गंगा को कहीं का छोड़ा
ना यमुना को
इज्ज़त उतारने में
मतलब संवारने में
इंसान से कमीना कोई है?
पर अब वक़्त आया है
माता को अहिल्या बनकर
कपूतों को मिटाने का
अपने सपूतों को बचाने का...
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