Thursday, January 1, 2015

धरती माँ

२९ जून २०१४

सहनशक्ती अति सहनशक्ती
शायद माँ के कई पर्यायों में है
तभी तो सभी प्रहार सहकर
धरती माँ हमें कुछ नहीं कहती
और कितना निचोड़ेगें हम
अब तो छाती में दूध भी ना रहा
खून भी बूंद बूंद सूख रहा
न गंगा को कहीं का छोड़ा
ना यमुना को
इज्ज़त उतारने में
मतलब संवारने में
इंसान से कमीना कोई है?
पर अब वक़्त आया है
माता को अहिल्या बनकर
कपूतों को मिटाने का
अपने सपूतों को बचाने का...

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