Thursday, January 1, 2015

तन्हाई

२२ जून २०१४

संगीत का कोई जलसा था या
घूमने फिरने की तमन्ना
जो ले गयी तीन समन्दर पार
कितने दूर पर कितने पास
कितने पास पर कितने दूर
यह तन्हाई है या मन का भ्रम
सब कुछ तो यहीं है सब कुछ तो वही है
सोच रहा हूँ कि मन को उदास कर लूं
चाँद लम्हों के लिए
पर ये मन है की उन्हें दूर मानता ही नहीं 

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