Thursday, January 1, 2015

चाँद और सूरज

६ दिसम्बर २०१४

चाँद अपने पूरे शबाब पर था
और सूरज भी
जब चाँद  सूरज को ललकारे
तब प्रकाश असमंजस हो जाता है
आसमां की लाली
ढूँढने लगती है अपना अस्तित्व 
किरणें अपना मार्ग छोड़
क्षितिज में कहीं
विक्षिप्त सी हो जाती हैं
खो सी जाती हैं
हे चाँद तेरा तो, 
वजूद ही सूरज है
उससे टकरा तू
कहाँ खोने चला है, मिटने चला है।

No comments:

Post a Comment