Thursday, December 22, 2016

इन्तजा़र

इन्तजा़र है उस ठिठूरन वाली ठंड का
इन्तजा़र है फूलों के प्रफुल्लित होने का
इन्तजार है उन बचपन की यादों का
उन उच्छृंखलताओं को फिर से जीने का
इन्तजार है
इन्तजार है उस उन्मुक्त जीवन का
इन्तजार है उन भूली बिसरी यादों का
जो छितर तितर बितर गयी हैं
इन्तजार है उस अमन चमन का
जो खुशियां बिखेंर दें
इन्तजार है बिन कतार के खुशियां पाने का
इन्तजार है उस जिन्दगी का जहां
हर चेहरे पर मुस्कान हो
बस इन्तजार है।

प्रदीप/ दिसम्बर २३, २०१६

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