Poem on Nov 20th on demonetisation:
क्या आतंक सिर्फ सीमा पार से आता है?
यदा कदा मैं अपने आप से
अपने साये से आतन्कित हो उठता हूं
अपनी सन्जोई हुई यादों को
खोने का एहसास
वर्षों से सहेज कर रखा
अपना सब कुछ
मिट जाने का एहसास
उन यादों को खोकर
कतारों में खडे होकर
अपना सब कुछ वापस
पा लेने का एहसास
क्या आतंकवाद नहीं है?
यदा कदा मैं अपने आप से
अपने साये से आतन्कित हो उठता हूं
अपनी सन्जोई हुई यादों को
खोने का एहसास
वर्षों से सहेज कर रखा
अपना सब कुछ
मिट जाने का एहसास
उन यादों को खोकर
कतारों में खडे होकर
अपना सब कुछ वापस
पा लेने का एहसास
क्या आतंकवाद नहीं है?
प्रदीप/ नवम्बर २०, २०१६
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