Thursday, April 29, 2021

हालात

हालात

साहित्य आज शर्मिंदा खड़ा है
सच्चाई बयां नहीं कर सकता
और जो सुनना चाहते हैं 
उसमे सच्चाई नहीं
सब कहते हैं कि सकारात्मक सोचो
सकारात्मक कहो
क्या सच्चाई से मुंह मोड़ना ही
सकारात्मकता है
दुखों के पहाड़ों पर खड़े
लाशों के ढेरों को देखते
आप मुंह फेर सकते हैं?
शायद हां अगर आपबीती ना हो तो
युद्ध में योद्धा को पहले आगे बढ़ना पड़ता है
तब विजय होती है
मरता तो प्यादा ही है
सेनापति नहीं
दुख और सुख एक ही सिक्के के पहलू हैं
आज एक उछल कर आया है, अगली बार
दूसरा आएगा
मुंह फेरने से सच्चाई नहीं बदलती
जैसे सुख को गले लगाते हो वैसे ही
दुख को भी अपनाओ, नहीं भी अपनाओगे तो
उसने कहीं जाना नहीं है 
सिर्फ आप अपने सिक्के का उछालना टाल पाओगे।
नहीं साहित्य शर्मिंदा नहीं है अपने बयान से
जिन्हे होना है वे शायद शाही ठिकानों में छीपे बैठे हैं
सच्चाई उन्हें भी खींच लाएगी
क्योंकि सच्चाई तो सच्चाई हैं।
छिपाए नही छुपती
छिपाए नहीं छुपती।

प्रदीप/अप्रैल ३०, २०२१

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