Thursday, April 29, 2021

गुलिस्तां

Ek gulistaan aaj ujada pada hai
Phir basega
Par jiski duniya ujad gayee ho
Woh gul kee talash nahee karega
Woh khilkhilahat, Woh muskaraahat
Agar lautee bhi to Uske peechhe
Ek dard chhupa rahega
Khuda ke apane khel hain
Woh kab, kyun, kahan, kya karta hai
Koi nahi janata
Hey ishwar, Hey allah, hey maalik
Ab to humen baksh de
Hum insaanon se huigaltiyon ko
Maaf Kar de.

Pradeep/April 30, 2021


गुलिस्तां

एक गुलिस्तां आज उजड़ा पड़ा है
फिर बसेगा
पर जिसकी दुनिया उजड़ गई हो
वो गुल की तलाश नहीं करेगा
वो खिलखिलाहट, वो मुस्कराहट
अगर लौटी भी
तो उसके पीछे एक दर्द
छुपा रहेगा
खुदा के अपने खेल हैं
वो कब, क्यों, कहां, क्या करता है
कोई नहीं जानता
हे ईश्वर, हे अल्लाह, हे मालिक, अब तो रहम कर
अब तो हमें बख्श दे
हम इंसानों से हुई गलतियों को
माफ़ कर दे।

प्रदीप/अप्रैल ३०, २०२१.

सन्नाटा/Stillness

सन्नाटा

वो दम घोटता धुंआ
शायद उस मां की लाश से उठ रहा होगा
जिसका बेटा उसे जलाने नहीं पंहुच सका होगा
उस भाई का होगा जिसके अंतिम दर्शन को 
भाई तड़पता रहा होगा
उस बहन का होगा जिसका भाई
अब राखी पर अपनी सूनी कलाई देखेगा
उस बेटे का होगा जिसका बाप
कलेजे पर पत्थर रख सांस ले रहा होगा
उस दोस्त का होगा जिसने 
सारी जिंदगी उसे हंसाया होगा
और उस पत्नी का होगा जिसने
साथ जीने मरने का वादा किया होगा
हां कुछ ऐसे वादे भी पूरे हुए हैं
साथ जिए हैं और साथ मरे हैं
गड्ढों की खुदाई से तेज़ आती लाशें
जो कल अजनबी वो आज
एक ही गढ्ढे में
साथ सोते साथी
कुंभ में डुबकी, और मोक्ष पाने की चाहत भी
पूरी हुई होगी
अपने नेता की चुनावी सभा और उसे 
सत्ताधीन कराने की तमन्नाएं
अधूरी रही होगी
वो कर्णभेदी एंबुलेंस की लगातार आती आवाज़ें
वो रोती बिलखती अपीलें
कहीं ऑक्सीजन की कमी से 
दम घुटने की तो कहीं
धुएं की घुटन सांसों को भेद रही है
अनिश्चित सी लगती जीने की तमन्नाएं
एक अजीब सा सन्नाटा है
एक अजीब सा सन्नाटा है।

प्रदीप/अप्रैल २९, २०२१



Stillness
That suffocating smoke,
Must be rising from that mother's body
whose son couldn't reach there for her last rites
Must be of the brother whose brother
must have been desperate to see him one last time Must be of the sister whose brother would see his empty wrist next Rakhee
Must be of the son whose father is seeing this with a heavy stone on his heart
Must be of a friend who made him laugh 
for a life time
Must be of the wife who had vowed to live and die together
Yes, such promises have come true 
They lived and died together
Bodies reaching faster than they could dig graves
Those never met now friends lying together in one grave
Wishing for moksha found that in Kumbh
Unfilled are the wishes of voters attending election rallies, alas! Couldn't see their benefactor rule
The ear piercing noise of ambulances
The heart rendering appeals for oxygen scarcity of which is taking people to another world
Rising smoke from crematoriums 
making you breath harder and harder
Unfinishined desires may remain so
Stillness here is so noisy
Stillness here is so noisy.

Pradeep/April 29, 2021.







हालात

हालात

साहित्य आज शर्मिंदा खड़ा है
सच्चाई बयां नहीं कर सकता
और जो सुनना चाहते हैं 
उसमे सच्चाई नहीं
सब कहते हैं कि सकारात्मक सोचो
सकारात्मक कहो
क्या सच्चाई से मुंह मोड़ना ही
सकारात्मकता है
दुखों के पहाड़ों पर खड़े
लाशों के ढेरों को देखते
आप मुंह फेर सकते हैं?
शायद हां अगर आपबीती ना हो तो
युद्ध में योद्धा को पहले आगे बढ़ना पड़ता है
तब विजय होती है
मरता तो प्यादा ही है
सेनापति नहीं
दुख और सुख एक ही सिक्के के पहलू हैं
आज एक उछल कर आया है, अगली बार
दूसरा आएगा
मुंह फेरने से सच्चाई नहीं बदलती
जैसे सुख को गले लगाते हो वैसे ही
दुख को भी अपनाओ, नहीं भी अपनाओगे तो
उसने कहीं जाना नहीं है 
सिर्फ आप अपने सिक्के का उछालना टाल पाओगे।
नहीं साहित्य शर्मिंदा नहीं है अपने बयान से
जिन्हे होना है वे शायद शाही ठिकानों में छीपे बैठे हैं
सच्चाई उन्हें भी खींच लाएगी
क्योंकि सच्चाई तो सच्चाई हैं।
छिपाए नही छुपती
छिपाए नहीं छुपती।

प्रदीप/अप्रैल ३०, २०२१