Wednesday, January 10, 2018

क़हर

ठिठूरन भरी ठंड की सुबह
अलसाते नकराते
मां की झिड़कियों से तंग
वह नहा धोकर रोज़ाना की तरह
तैय्यार हो निकली
स्कूल की ओर
क्लास और मैदान कि वो मस्तियां
दोस्तों के साथ ठहठहाके
और फिर अनमनी सी घर को चली
उधर घर के काम निपटाकर मां
किताब पढ़ने के बहाने
आंगन की धूप में सामने वाले
बस स्टाप पर नज़र गड़ाये बैठी थी
उसके इन्तजार में
न जाने कब झपकी लगी और
बिटिया के भविष्य के सपने बुनती रही
हाहाकार से जब नींद उड़ी
तो देखा सब कुछ टूट गया था
सब कुछ लुट गया था
एक बेदर्द अक्षमणिय गलती ने
कई बच्चों के साथ उसकी बिटिया को भी
काल के ग्रास में धकेल दिया था
सपनों की खुशियों से दूर
अब उसका जीवन
टूटा बिखरा था
बिलख़ना दूर वह आंगन में
बेसुध पड़ी थी।
( हाल ही हुई इन्दौर के डीपीएस के बस ड्राइवर के अक्षम्य अपराध की घटना पर)

प्रदीप/ जनवरी ०९, २०१८

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