Sunday, January 31, 2016

साहिर-अमृता से एक मुलाक़ात..

आज फिर किसी खयाल ने झकझोरा है मुझे
क्या खयालों की दुनिया भी सो जाती है?
जिसे जगाने खुद बखुद उसे आना होता है
जिसकी कलम ने कहा हो
"कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है"।
आज अचानक "एक मुलाकात" में
साहिर को अमृता के खयालों में देखा
तो बरबस ही आंसू छलक आए
उस अधूरी सी प्रेम कहानी के लिये
उस अधूरे से देश के लिये
उस अधूरे से समाज के लिये
जो न इसका रहा न उसका
साहिर को तो चैन नहीं मिला
पर साहिर कि रूह को?
इश्क में  जो "अमृत" उसने पाया, उसका सूकूं
जिसे ना पाया उसके गम से कहीं बेहतर था।

प्रदीप/ दिसम्बर १४, २०१५

No comments:

Post a Comment